वयस्क शिक्षा | Adult Education in Hindi

वयस्क शिक्षा या एडल्ट एजुकेशन हमारे समाज में अत्यंत ही आवश्यक है। क्योंकि हमारे समाज के युवा 21 वर्ष की उम्र के बाद कई बार पढ़ाई से दूर हट जाते है। क्योंकि उनका पढ़ाई का अनुभव अभी तक काफी खराब होता है। 

‘वयस्क’ से मतलब है ‘प्रोढ़’ यानी जो सामान्यतः 21 साल की उम्र के ऊपर हैं या हो चुके हैं। ऐसे वयस्क अपने देश में भरे पड़े हैं, जिनकी उम्र तीस-चालीस पचास वर्षों तक की है और जिन्होंने जीवन की पाठशाला में भले-बुरे अनुभव जो भी प्राप्त किये हो, पर कभी भी शिक्षा- किसी विद्यालय या महाविद्यालय में नहीं पायी। ऐसे बयस्क ज्यादातर गाँवों में ही हैं और भारत गाँवों का देश है जैसा कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था।

"वयस्क शिक्षा" written on white background with an animated image of student

शिक्षा के आभाव में कर्तव्य से पीछे रह जाते है युवा

हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है । सत्तर करोड़ की आबादी में यदि 25% भी वयस्क हों तो उनकी आबादी 17 करोड़ से ऊपर हो होगी। वयस्क मताधिकार के आधार पर ये देश के निर्वाचन कार्य में सीधे भाग लेते हैं और इस विशाल लोकतन्त्र के कर्णधारों के चयन की भूमिका नियाहते हैं। इसमें संदेह नहीं कि इनमें प्रायः समझदारी का अभाव नहीं होता, पर यह भी सचाई है कि शिक्षा के अभाव में मात्र अंगूठा छाप ज्ञान के आधार पर न तो ये अपने कर्तव्यों की सही पहचान कर पाते हैं और न अधिकारों का सदुपयोग ही इन्हें स्वार्थी और असामाजिक तत्त्व आसानी से उलटा-सीधा पढ़ा देते हैं और अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं।

अपनी ‘अनपढ़ता’ को ये अब नये रूप में विद्यार्थी जीवन का प्रारम्भ कर दूर नहीं कर सकते। इनकी उपयुक्त समस्या का समाधान तो कुछ मिन्न ही हो। सकता है। वयस्क शिक्षा के रूप में उस समाधान को ढूंढ़ने की कोशिश कुछ वर्ष पूर्व की गयी है। इसकी मुख्य चेतना (स्पीरिट) विभिन्न राज्यों के विभिन्त प्रखण्डों में फैले विभिन्न गाँवों के घर-घर में इसका संदेश पहुँचाना है और एक निश्चित संख्या के गांवों के बीच किसी ऐसे स्थल का चयन करना है, जहाँ ऐसे प्रोढ़ वयस्क पहुँच सकें और उन्हें अक्षर ज्ञान कराकर धीरे-धीरे इतना कुछ पढ़ा सिखा दिया जाय कि वे विशुद्ध ‘अनपढ़’ न रह जायें, अपने अधिकारों और कर्तव्यों को पहचानने लगे, चुनाव के समय अपने सही उम्मीदवार का निर्णय कर सकें। संक्षेप में, वे सही अर्थों में राष्ट्र की मुख्य जीवन-धारा का अंग बन सकें और राष्ट्र की सर्वतोमुखी प्रगति में भागीदार हो सकें।

वयस्क शिक्षा कार्यक्रम का उद्देश्य वयस्क मताधिकार से सम्पन्न, पर निरक्षर जनों में शिक्ष राप्ति के अवसर से वंचित रह जाने के कारण जो कमी आ गयी है उसे पूरा करना है। उन्हें दैनिक जीवनोपयोगी शिक्षा से सम्पन्न करता है। उनमें उत्प्रेरणा भरकर उनके अन्तःकरण में उठती हुई जीवन के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित जिज्ञासाओं का समाधान करना है।

वयस्क शिक्षा का कार्यक्रम मुख्य रूप से ग्रामीणों को दृष्टिपथ में रखकर किया गया है। उनमें भी जहाँ हरिजन, अनुसूचित एवं आदिवासी जनजातियों की आबादी विशेष है, ग्रामीण क्षेत्रों को इस कार्यक्रम में विशेष स्थान दिया गया है। जैसे ग्रामीण किसान (तीन प्रकार के संताप – निरक्षरता, निर्धनता ओर बेरोजगारी) से पीड़ित हैं। वयस्क शिक्षा कार्यक्रम उन्हें इन तीनों प्रकार के दिलानेवाला कार्यक्रम या आन्दोलन है।

अभिशापों से मुक्ति

समाजशास्त्रियों एवं शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार यह निम्नांकित विषयों से सम्बद्ध ज्वलन्त राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा 

1. धार्मिक सहिष्णुता 

2. परिवार नियोजन

3. स्वास्थ्य शिक्षा

4. आर्थिक

5. बेरोजगारी-उन्मूलन

6. स्त्री-पुनरुत्थान

7. प्रजातन्त्र में निष्ठा 

वयस्क शिक्षा के आभाव में गलती कर बैठते है 

हमारा विशाल देश अनेकता में एकता का महान् उदाहरण है। पर कुछ स्वार्थी तत्त्व अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इस देश को धार्मिक सहिष्णुता को नष्ट कर साम्प्रदायिक दंगे करवाते हैं। वयस्क शिक्षा से ऐसे तत्त्वों पर अंकुश लगेगा और परस्पर धार्मिक सद्भाव बना रह सकेगा।

हमारे देश की सबसे बड़ी और जटिल समस्या आवादी की है। सामान्यतया प्रतिमिनट आठ बच्चे इस देश में पैदा होते रहते हैं। शिक्षा के अभाव में अधिकांश अनपढ़ एवं ग्रामीण जन बच्चों का होना परमात्मा की कृपा समझते हैं। स्वयं उनकी इसमें क्या भूमिका है और इसके कारण उनका पारिवारिक जीवन कितना संकटमय एवं आर्थिक परेशानियोंवाला हो जाता है, इसे वे नहीं समझते। अपनी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से भी वे अनभिज्ञ रहते हैं। शिक्षा के अभाव में वे न तो अपना आर्थिक कार्यक्रम बना पाते हैं, न उसके सहायक स्रोतों से परिचित हो पाते हैं और त अपनी वेरोजगारी को ही दूर करने में सक्षम हो पाते हैं।

वयस्क शिक्षा कार्यक्रम का सबसे मुख्य लक्ष्य है – ग्रामीण अनपढ़ों में खासकर स्त्री- समुदाय को जाग्रत करना एवं समुन्नत करना। कारण वे ही राष्ट्र की नयी पीढ़ियों की निर्मात्री हैं। फिर बिना उनके जगे प्रजातन्त्र में हमारी सच्ची निष्ठा भी प्रमाणित नहीं हो सकती।

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