भ्रष्टाचार पर निबंध : भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या जिसका निदान है जरुरी

भ्रष्टाचार पर निबंध आज के समय में निहायत ही जरुरी है, ताकि सभी को भ्रष्टाचार जैसी गंभीर समस्या से अवगत कराया जा सके एवं इसके निदान हेतु प्रयासरत्त बनाया जा सके.

भ्रष्टाचार पर निबंध | Essay On Corruption In Hindi 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अन्दर रहते हुए उसके व्यक्तित्व के दो स्पष्ट महत्त्वपूर्ण भाग हो जाते हैं। 

पहले भाग में उसका व्यक्तित्व एवं पारिवारिक जीवन होता है तो दूसरे में उसका सामा जिक । ये दोनों एक-दूसरे के पूरक और सहायक भाग है। 

किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के इन दोनों पक्षों का सम्यक विकास तभी होता है जब वह सम्यक आचरण करता है।

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भ्रष्टाचार का अर्थ

‘भ्रष्टाचार का अर्थ है ‘भ्रष्ट आचरण’।  पर, ‘भ्रष्टाचार’ शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से सामाजिक दायित्वों का सम्यक निर्वाह न करने, उल्टे कोरा स्वार्थ साधने आदि से उत्पन्न होनेवाली अराजकता के लिए उत्तरदायी आचरणों के बोध के लिए ही किया जाता है।

भ्रष्टाचार एक समस्या

मान लीजिए कि तीन व्यक्ति हैं। इनमें एक गल्ला का रोजगार करनेवाला है, दूसरा शिक्षक है एवं तीसरा सरकारी कर्मचारी है।

इनमें पहले का सही आचरण तभी माना जायगा जब वह अपने क्षेत्र के उपभोक्ताओं को सही मूल्य पर सही वस्तुएँ मुहैया कराता रहे। 
यदि वह ऐसा नहीं कर गल्ला छिपाये रखता है, भारी मुनाफे पर नाजायज ढंग से बेचता है या सामानों में मिलावट कर नाजायज मुनाफा कमाता है तो वह भ्रष्टाचार करता है और दंड पाने योग्य है। 
कारण, वह अपने भ्रष्ट आचरण से अपने सही कर्तव्य का पालन तो नहीं ही करता है, अपने घोर स्वार्थ के कारण समाज को अनेक प्रकार की हानियाँ भी पहुँचाता है। 
इसी प्रकार सही शिक्षक वह है जो अपने आदर्श आचरण, गम्भीर अध्ययन एवं सुलझी अभि व्यक्ति-सामर्थ्य के कारण अपने छात्रों का ज्ञान-वर्द्धन तो करता ही है, उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास भी करता है। 
ऐसे शिक्षक का आचरण ही उसके क्षेत्र का आदर्श आचरण होगा और वह देश के चतुर्दिक विकास में सही योगदान करता पाया जायगा। 
इसके विपरीत जो शिक्षक अध्ययन को पूरी तरह समर्पित नहीं है, केवल शिक्षणेतर कार्यों से ही उलझा रहता है, और छात्रों को शिक्षणेतर कार्यों में उलझाये रखता है तो वह निश्चय ही भ्रष्ट आचरणवाला है और उसकी मनोवृत्ति भ्रष्टाचारवाली या भ्रष्टाचार से दूषित मान्य है ।

यही विश्लेषण सरकारी कर्मचारी के आचरण के प्रति दिया जा सकता है। सरकारी कर्मचारी की आदर्श स्थिति यही मानी जा सकती है कि वह जनता एवं सरकार के बीच एक आदर्श माध्यम का काम कर सके। 

भ्रष्टाचार के कारण

सरकार ने जो कायदे कानून बनाये हैं, उनके दायरे में वह सही व्यक्ति के उसके विभाग से सम्बद्ध कार्यो में तत्परता से सहयोग कर उसका हित साधित कर सके। 
ऐसा न कर यदि वह आम जनता को रिश्वत के लिए संकट में डालता है, उसके कामों में बिलम्ब करता है और सरकार के सामने उसके मामले को भ्रष्ट रूप में रखता है तो निश्चय ही वह भ्रष्टाचार से कलुषित है।

इस प्रकार हम पाते हैं कि भ्रष्टाचार यद्यपि प्रतिबिम्बित होता है किसी व्यक्ति के आचरण में, पर मूलतः उसका सम्बन्ध है उसके उस विवेक से जो यह बतलाता है कि “क्या करना सही है ?” और “क्या करना गलत ?” 

यह ‘विवेक’ प्रबुद्ध होता है सही शिक्षा से एवं कर्तव्य निष्ठा से। जहाँ तक कर्तव्य निष्ठा का सवाल है, वह उपयुक्त ‘विवेक’ से जागृत होती है। 
पर, जहाँ ‘विवेक’ जड़ या कुण्ठित हो रहा हो, वहाँ ऊपर के अधिकारियों का अंकुश भी मातहत कर्मचारियों में कर्तव्य निष्ठा का भाव जगाता है ।

हमलोगों के देश की सामाजिक स्थिति बड़ी विषम है। ऊपर के अधिकारी नैतिक दृष्टि से प्रभावहीन एवं और ज्यादा भ्रष्ट हैं। उनका न तो मातहतों पर जरा भी नैतिक प्रभाव है और न प्रबुद्ध जनता पर ही । 

यही कारण है कि आज समाज में भ्रष्टाचार की समस्या इतनी गहराई तक फैली हुई दीखती है। 

भ्रष्टाचार का निदान

इसे समूल उखाड़ फेंकने का एक ही सही उपाय है आम ‘जनता’ का जागरण, तत्पश्चात् चुनाव की दोषपूर्ण प्रणाली में सुधार, योग्य एवं सच्चरित्र व्यक्तियों के सामने आने एवं गलत व्यक्तियों की किसी भी कीमत पर प्रतिनिधि के रूप में चुने न दिये जाने का पवित्र संकल्प, अन्यथा यह रोग असाध्य है। 
जिन देशों में जनता शिक्षित एवं सतर्क होती है, वहाँ भ्रष्टचार अपेक्षाकृत कम फैल पाता है।

अपने देश में भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए ‘राष्ट्रीय चरित्र’ (National character) का निर्माण जरूरी है। 

ऐसा लगता है कि आज राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्र में ‘चरित्र’ जैसा कोई नैतिक मूल्य नहीं रह गया है। 
अपवादों की बात छोड़ दें तो हर कोई अपने कर्तव्य के पालन और परिश्रम करने से भागता है, उसमें ईमानदारी और निष्ठा का अभाव है और भोग-विलास की सामग्री अनायास जुटा लेना चाहता है। 
इस प्रवृत्ति को कारगर उपायों से दूर करना होगा अन्यथा भ्रष्टाचार की भूमि उर्वर ही बनी रहेगी।
चलते-चलते :
भ्रष्टाचार पर निबंध आपको दैनिक जीवन के क्रियाकलाप के दौरान होने वाले भ्रष्टाचारों से लेकर सरकारी कामकाजों के दौरान होने वाले सभी भ्रष्टाचारों से अवगत कराता है.
जिससे आप भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या निबंध को पढ़कर एक जागरूक नागरिक बन सके और भ्रष्ट नेता, अफसर इत्यादि का पर्दाफास कर सके.

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