विद्यार्थियों पर सिनेमा का प्रभाव

विद्यार्थियों पर सिनेमा का प्रभाव अत्यंत ही गहरा होता है. क्योकि आज की युवा पीढ़ी सिनेमा देखने में ज्यादा इंटरेस्ट ले रही है.

चुकी सभी के हाथो में smartphone और तेज इन्टरनेट कनेक्शन है, ऐसे में उनके लिए सिनेमा और web सीरीज जैसे ऑनलाइन मनोरंजन के कंटेंट तक पहुच बनाना आसान है.

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विद्यार्थियों पर सिनेमा का प्रभाव

सिनेमा आज का सबसे लोकप्रिय मनोरंजन साधन है। आये दिन रोज-व-रोज कस्बों और शहरों में सिनेमा घर खुलते जा रहे हैं पर, उनमें उमड़नेवाली भीड़ कम नहीं हो। रही है। शायद इसका एक जवस्त कारण यह है कि मनोरंजन जहां जीवन के लिए अनिवार्य है, वहाँ हमारे चारों ओर मनोरंजन के सही साधनों का बड़ा ही अभाव है। ऐसी हालत में सिनेमा एक ऐसे मनोरंजन-साधन के रूप में सामने आता है, जिसमें कथा, सौन्दर्य, उत्सुकला, संगीत और रंग-बिरंगी दृश्यावलियों का सुख एकत्र मिलता है। यही कारण है कि सिनेमा देखने के लिए सभी उमड़ पड़ते हैं और इन उमड़नेवाले लोगों में विद्यार्थियों की संख्या सबसे अधिक होती है। विद्यार्थी युवा होते हैं। युवाकाल में मनोरंजन की ओर मन और तेजी से दौड़ता है। ऐसे में सिनेमा बहुधा विद्यार्थियों के सर पर चढ़कर बोलने लगता है। कुछ तो उसके पीछे ऐसे दीवाने हो जाते हैं कि अपनी बुनियादी जरूरतों की भी उपेक्षा कर सिनेमा देखते चलते हैं और अपना मुख्य उद्देश्य ही नष्ट कर बैठते हैं ।

इस सिनेमा का विद्यार्थियों पर प्रभाव आजकल अच्छा नहीं पड़ रहा है। कारण स्पष्ट है। विद्यार्थियों का मन बड़ा कोमल होता है। युवावस्था के कारण जहाँ देह में शक्ति भरपूर होती है, मनोरंजन की गहरी प्यास होती है, वहां बुद्धि अपरिपक्व और रचनात्मक संकल्पों से शून्य। ऐसी मनोदशावाले विद्यार्थी जब आजकल बननेवाली प्रायः हिंसा, अपराध, विकृत यौन-चित्रणों या उत्तेजक दृश्यों से भरी फिल्में देखते हैं तो उनका बड़ा ही बुरा प्रभाव पड़ता है। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि आजकल बनायी जानेवाली अधिकांश फिल्मों का पहला और अंतिम लक्ष्य खूब पैसा कमाना होता है । 

बलात्कार एवं समाजीक हिंसाओं की बड़ी वजह है सिनेमा 

पिछले कुछेक वर्षों में हमारे समाज में जो मार-धाड़, हिंसा, अपहरण और बलात्कार की घटनाओं ने जोर पकड़ा है, उन सबके लिए केवल एक ‘कारण’ बतलाने को कहा जाय तो निश्चित रूप से ‘सिनेमा’ का नाम लिया जा सकता है। मनोरंजन और औत्सुक्य (Suspense) के नाम पर पिछले दो दशकों में अपराध फिल्में भारी संख्या में बनी है। इन फिल्मों में चोरी डकैती के हैरतअंगेज साहसिक कारनामों को दिखलाया गया था। युवा पीढ़ी के सदस्यों ने न केवल इन कारनामों को देखा है, बल्कि उन्हें स्वयं कर दिखलाने का साहस और प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है ।

गन्दी एवं हिंसक फिल्मो के निर्माण पर रोक है समाधान

यह सही है कि मनोरंजन के प्रमुख साधन के रूप में सिनेमा को रोका नहीं जा सकता, पर गंदी, उद्देश्यहीन और धन-बटोरू फिल्मों का उत्पादन तो रोका ही जा सकता है। आज जरूरत है शुद्ध राष्ट्रीय उद्देश्य से बनायी जानेवाली उन कलात्मक फिल्मों की, जो विद्यार्थियों की युवा पीढ़ी को उदात्त भावनाओं से भर सकें। ऐसी फिल्में, जो उनको अपनी संस्कृति से परिचित करायें, उनमें नवनिर्माण की भावना जगाएँ और मुसीबतों से जूझने की उनमें हिम्मत दें – अब सामने आनी चाहिए। तभी विद्यार्थियों पर सिनेमा का भला और रचनात्मक प्रभाव पड़ सकेगा।

साम्यवादी देशों में सिनेमा का उपयोग केवल मनोरंजन-साधन के रूप में नहीं किया जाता, बल्कि इसे राष्ट्रीय विकास के विभिन्न पक्षों, उसकी समस्याओं एवं प्रस्तावित समाधान से जोड़ दिया जाता है। वहीं निरुद्देश्य फिल्में बनती ही नहीं । वहाँ शिक्षा विस्तार में, खासकर विज्ञान एवं चिकित्सा सम्बन्धी ज्ञान के विस्तार में इसका महत्त्वपूर्ण उपयोग किया जाता है। 

वस्तुतः अपने देश में भी सिनेमा छात्र हित में तभी प्रभावशाली हो सकता है जब उसे राष्ट्र की युवा पीढ़ी की समस्याओं के समाधान एवं नैतिक मूल्यों के विकास से जोड़ दिया जाय ।

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